Swaran Lata
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Wednesday
माता-पिता अपने बच्चों के लिए जीवन में बहुत कुछ करते हैं। वे बच्चों की जरुरतों को पूरा ध्यान रखते हैं लेकिन अक्सर देखने में यह आता है कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और मां-बाप बुढ़े। तो बच्चे उन्हें घर का अनावश्यक सामान समझने लगते हैं जबकि उम्र के इस पढ़ाव पर उन्हें अपनों के प्रेम की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। इसलिए अपने माता-पिता की आवश्यकताओं को समझें और उनके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करें।
एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ के आस-पास एक बच्चा खेलने आया करता था। बच्चे और पेड़ की दोस्ती हो गई। पेड़ ने उस बच्चे से कहा तू आता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। बच्चा बोला लेकिन तुम्हारी शाखाएं बहुत ऊंची है मुझे खेलने में दिक्कत होती है। बच्चे के लिए पेड़ थोड़ा नीचे झुक गया। वह बच्चा खेलने लगा। एक बार बहुत दिनों तक बच्चा नहीं आया तो पेड़ उदास रहने लगा। और जब वह आया तो वह युवा हो चुका था। पेड़ ने उससे पूछा तू अब क्यों मेरे पास नहीं आता? वह बोला अब मैं बड़ा हो गया हूं। अब मुझे कुछ कमाना है। पेड़ बोला मैं नीचे झुक जाता हूं तो मेरे फल तोड़ ले और इसे बेच दे। तेरी समस्या का समाधान हो जाएगा।
इस तरह वह पेड़ जवानी में भी उसके काम आ गया। फिर बहुत दिनों तक वह नहीं आया। पेड़ फिर उदास रहने लगा। फिर बहुत दिनों वह वापस लौटा तो पेड़ ने कहा तुम कहा रह गए थे। वह बोला क्या बताऊं बड़ी समस्या है। परिवार बड़ा हो गया है अब मुझे एक घर बनाना है। पेड़ बोला एक काम कर मुझे काट ले। मेरी लकडिय़ां तेरे कुछ काम आएंगी। उसने पेड़ काट डाला। अब केवल एक ठूंठ रह गया पेड़ के स्थान पर। फिर लंबे अरसे तक वह नहीं आया। फिर एक दिन वह आया तो बड़ा चिंतित था। पेड़ बोला तुम कहा रह गए थे और इतने परेशान क्यों हो। वह बोला मैं तो पूरी तरह से परिवार में उलझ गया हूं। बाल-बच्चे हो गए हैं।
बेटी के लिए रिश्ता देखने जाना है। रास्ते में नदी है कैसे जाऊँ? पेड़ बोला। तू एक काम कर यह जो थोड़ी लकड़ी और बची है इसे काटकर एक नाव बना और अपनी बेटी के लिए लड़का देखने जा। उसने ऐसा ही किया। फिर वह बहुत दिनों तक नहीं आया। बहुत दिनों बाद जब वह आया तो बड़ा परेशान था। पेड़ ने पूछा अब क्या हुआ? वह बोला मैंने बच्चों को बड़ा तो कर दिया पर अब यह चिंता है कि मेरे बच्चे मेरे चिता की लकड़ी भी लाएंगे कि नहीं? पेड़ ने कहा ये जो भी कुछ बचा है मेरे शरीर का हिस्सा। इसे भी तू काट ले यह तेरे अंतिम समय में काम आएगा। और उसने पेड़ का बाकी हिस्सा भी काट लिया। और इस तरह उस पेड़ ने उस बच्चे के प्रेम में अपना संपूर्ण व्यक्तित्व ही न्यौछावर कर दिया।
एक बहुत बड़ा पेड़ था। उस पेड़ के आस-पास एक बच्चा खेलने आया करता था। बच्चे और पेड़ की दोस्ती हो गई। पेड़ ने उस बच्चे से कहा तू आता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। बच्चा बोला लेकिन तुम्हारी शाखाएं बहुत ऊंची है मुझे खेलने में दिक्कत होती है। बच्चे के लिए पेड़ थोड़ा नीचे झुक गया। वह बच्चा खेलने लगा। एक बार बहुत दिनों तक बच्चा नहीं आया तो पेड़ उदास रहने लगा। और जब वह आया तो वह युवा हो चुका था। पेड़ ने उससे पूछा तू अब क्यों मेरे पास नहीं आता? वह बोला अब मैं बड़ा हो गया हूं। अब मुझे कुछ कमाना है। पेड़ बोला मैं नीचे झुक जाता हूं तो मेरे फल तोड़ ले और इसे बेच दे। तेरी समस्या का समाधान हो जाएगा।
इस तरह वह पेड़ जवानी में भी उसके काम आ गया। फिर बहुत दिनों तक वह नहीं आया। पेड़ फिर उदास रहने लगा। फिर बहुत दिनों वह वापस लौटा तो पेड़ ने कहा तुम कहा रह गए थे। वह बोला क्या बताऊं बड़ी समस्या है। परिवार बड़ा हो गया है अब मुझे एक घर बनाना है। पेड़ बोला एक काम कर मुझे काट ले। मेरी लकडिय़ां तेरे कुछ काम आएंगी। उसने पेड़ काट डाला। अब केवल एक ठूंठ रह गया पेड़ के स्थान पर। फिर लंबे अरसे तक वह नहीं आया। फिर एक दिन वह आया तो बड़ा चिंतित था। पेड़ बोला तुम कहा रह गए थे और इतने परेशान क्यों हो। वह बोला मैं तो पूरी तरह से परिवार में उलझ गया हूं। बाल-बच्चे हो गए हैं।
बेटी के लिए रिश्ता देखने जाना है। रास्ते में नदी है कैसे जाऊँ? पेड़ बोला। तू एक काम कर यह जो थोड़ी लकड़ी और बची है इसे काटकर एक नाव बना और अपनी बेटी के लिए लड़का देखने जा। उसने ऐसा ही किया। फिर वह बहुत दिनों तक नहीं आया। बहुत दिनों बाद जब वह आया तो बड़ा परेशान था। पेड़ ने पूछा अब क्या हुआ? वह बोला मैंने बच्चों को बड़ा तो कर दिया पर अब यह चिंता है कि मेरे बच्चे मेरे चिता की लकड़ी भी लाएंगे कि नहीं? पेड़ ने कहा ये जो भी कुछ बचा है मेरे शरीर का हिस्सा। इसे भी तू काट ले यह तेरे अंतिम समय में काम आएगा। और उसने पेड़ का बाकी हिस्सा भी काट लिया। और इस तरह उस पेड़ ने उस बच्चे के प्रेम में अपना संपूर्ण व्यक्तित्व ही न्यौछावर कर दिया।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में मानव जीवन के सुखों, कामनाओं की पूर्ति या पीड़ा मुक्ति या ग्रह दोषों की शांति के लिए सप्ताह के हर दिन अलग-अलग देवी-देवताओं की आराधना का महत्व बताया गया है। इनमें खासतौर पर शिव पुराण में हर दिन अलग-अलग देवता की पूजा और उसका फल बताया गया है। जानते हैं किस दिन किस देवता की उपासना मनचाहे फल देती है -
रविवार - सूर्य पूजा, ब्राह्मणों को भोजन, शारीरिक रोगों से मुक्ति
सोमवार - लक्ष्मी की पूजा, ब्राह्मणों को पत्नी सहित घी से पका हुआ भोजन, धन लाभ
मंगलवार - काली पूजा, उड़द, मूंग और अरहर दाल या ब्राह्मण को अनाज से बना भोजन, रोगों से छुटकारा।
बुधवार - विष्णु पूजन, पुत्र सुख
गुरुवार - वस्त्र, यज्ञोपवीत और घी मिले खीर से देवताओं खासतौर पर गुरु का पूजन, लंबी आयु मिलती है। शुक्रवार - देवताओं का पूजन खासतौर पर देवी या लक्ष्मी, ब्राह्मणों को अन्न दान, सभी तरह के भोगों की प्राप्ति।
शनिवार - रुद्र पूजा, तिल से हवन, दान, ब्राह्मणों को तिल मिला भोजन,अकाल मृत्यु से रक्षा कराने से अकाल मृत्यु नहीं होती।शिवपुराण के मुताबिक सातों दिन इस तरह देव आराधना से शिव पूजा का ही फल प्राप्त होता है।
रविवार - सूर्य पूजा, ब्राह्मणों को भोजन, शारीरिक रोगों से मुक्ति
सोमवार - लक्ष्मी की पूजा, ब्राह्मणों को पत्नी सहित घी से पका हुआ भोजन, धन लाभ
मंगलवार - काली पूजा, उड़द, मूंग और अरहर दाल या ब्राह्मण को अनाज से बना भोजन, रोगों से छुटकारा।
बुधवार - विष्णु पूजन, पुत्र सुख
गुरुवार - वस्त्र, यज्ञोपवीत और घी मिले खीर से देवताओं खासतौर पर गुरु का पूजन, लंबी आयु मिलती है। शुक्रवार - देवताओं का पूजन खासतौर पर देवी या लक्ष्मी, ब्राह्मणों को अन्न दान, सभी तरह के भोगों की प्राप्ति।
शनिवार - रुद्र पूजा, तिल से हवन, दान, ब्राह्मणों को तिल मिला भोजन,अकाल मृत्यु से रक्षा कराने से अकाल मृत्यु नहीं होती।शिवपुराण के मुताबिक सातों दिन इस तरह देव आराधना से शिव पूजा का ही फल प्राप्त होता है।
शिव के महामृत्युंजय रुप की उपासना दु:ख, रोग और संकट दूर करने में बहुत शुभ मानी गई है। शास्त्रों में इस मंत्र के अलग-अलग रूप में उच्चारण से मानवीय जीवन से जुड़ी अनेक परेशानियों को दूर करने का उपाय बताया गया है।
साधारणत: यह देखा जाता है कि कोई व्यक्ति पीड़ा दूर करने के लिए किसी विद्वान से महामृत्युंजय जप का उपाय जान तो लेते हैं, किंतु इस मंत्र जप की मर्यादाओं और नियमों को जानकारी के अभाव में अनदेखा कर देते हैं। जबकि शास्त्रों में बताया गया है कि किसी भी मंत्र शक्ति के पूरे लाभ और असर के लिए उसे नियम से करना बहुत जरूरी है। इसलिए यहां जानते हैं इस प्रभावकारी मंत्र जप के समय किन बातों का पालन आवश्यक है -
- मंत्र जप के वक्त पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके बैठें।
- जप कुश के आसन पर बैठकर करना श्रेष्ठ होता है।
- मंत्र जप रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
- जप करते वक्त शिवलिंग, शिव की मूर्ति, फोटो या महामृत्युंजय यंत्र सामने रखें।
- जप काल में घी का दीप और सुगंधित धूप जलाएं।
- मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध हो।
- हर रोज नियत संख्या में मंत्र जप का संकल्प लें, जिसे जरूर पूरा करें।
- मंत्र जप की संख्या पूरी होने तक रूद्राक्ष माला गौमुखी के अंदर ही रखें।
- जप का स्थान हर रोज न बदलें।
- यथासंभव जप के दौरान शिव का अभिषेक जल या दूध से करें।
- महामृत्युंजय मंत्र जप संख्या का संकल्प पूरा होने तक किसी भी प्रकार के दुराचरण न करें। चाहे वह शरीर से हो, बातों से हो या फिर मानसिक।
साधारणत: यह देखा जाता है कि कोई व्यक्ति पीड़ा दूर करने के लिए किसी विद्वान से महामृत्युंजय जप का उपाय जान तो लेते हैं, किंतु इस मंत्र जप की मर्यादाओं और नियमों को जानकारी के अभाव में अनदेखा कर देते हैं। जबकि शास्त्रों में बताया गया है कि किसी भी मंत्र शक्ति के पूरे लाभ और असर के लिए उसे नियम से करना बहुत जरूरी है। इसलिए यहां जानते हैं इस प्रभावकारी मंत्र जप के समय किन बातों का पालन आवश्यक है -
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- जप कुश के आसन पर बैठकर करना श्रेष्ठ होता है।
- मंत्र जप रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
- जप करते वक्त शिवलिंग, शिव की मूर्ति, फोटो या महामृत्युंजय यंत्र सामने रखें।
- जप काल में घी का दीप और सुगंधित धूप जलाएं।
- मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध हो।
- हर रोज नियत संख्या में मंत्र जप का संकल्प लें, जिसे जरूर पूरा करें।
- मंत्र जप की संख्या पूरी होने तक रूद्राक्ष माला गौमुखी के अंदर ही रखें।
- जप का स्थान हर रोज न बदलें।
- यथासंभव जप के दौरान शिव का अभिषेक जल या दूध से करें।
- महामृत्युंजय मंत्र जप संख्या का संकल्प पूरा होने तक किसी भी प्रकार के दुराचरण न करें। चाहे वह शरीर से हो, बातों से हो या फिर मानसिक।
छोटी सी बात भी बदल देती है जीवन की दिशा
हम कई बार अनजाने में ही कोई भी बात मुंह से निकाल देते हैं। बिना सोचे-समझें बोली गई कई बातें हमारा जीवन बदल देती हैं। कई बार थोड़ा सा गुस्सा या अनजाने में किया गया मजाक भी भारी पड़ सकता है। इसी कारण से विद्वानों ने कहा है कि हमेशा तौलों फिर बोलो। कई बार जरा सी बातें भी इतना तूल पकड़ती है कि उसका परिणाम आपकी जिंदगी की दिशा बदल देता है।श्रीमद् भागवत पुराण में एक कथा इसी बात की ओर संकेत करती है। वृषपर्वा दैत्यों के राजा थे, उनके गुरु थे शुक्राचार्य। वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा और शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी दोनों सखी थीं लेकिन शर्मिष्ठा को राजा की पुत्री होने का अभिमान भी बहुत था। दोनों साथ-साथ रहती थीं, घूमती, खेलती थीं। एक दिन शर्मिष्ठा और देवयानी नदी में नहा रही थीं, तभी देवयानी ने नदी से निकलकर कपड़े पहने, उसने गलती से शर्मिष्ठा के कपड़े पहन लिए। शर्मिष्ठा से यह देखा न गया और उसने अपनी दूसरी सहेलियों से कहा कि देखो, इस देवयानी की औकात, राजकुमारी के कपड़े पहनने की कोशिश कर रही है। इसका पिता दासों की तरह मेरे पिता के गुणगान किया करता है और यह मेरे कपड़ों पर अधिकार जमा रही है।
देवयानी और शर्मिष्ठा में इस बात को लेकर झगड़ा हो गया। देवयानी ने सारी बात अपने पिता शुक्राचार्य को सुनाई और कहा कि अब हम इस राजा के राज में नहीं रहेंगे। शुक्राचार्य ने वृषपर्वा को सारी बात बताई और राज्य छोड़कर जाने का फैसला भी सुना दिया। चूंकि शुक्राचार्य मृत संजीवनी विद्या के एकमात्र जानकार थे और वे देवताओं से मारे गए दैत्यों को जीवित कर देते थे, उनके जाने से वृषपर्वा को बहुत नुकसान होता सो उसने शुक्राचार्य के पैर पकड़ लिए। शुक्राचार्य ने कहा तुम मेरी बेटी को प्रसन्न कर दो तो ही मैं यहां रह सकता हूं। वृषपर्वा ने देवयानी के भी पैर पकड़ लिए, देवयानी ने कहा तुम्हारी पुत्री ने मेरे पिता को दास को कहा है इसलिए अब उसे मेरी दासी बनकर रहना होगा।
वृषपर्वा ने उसकी बात मान ली और अपनी बेटी राजकुमारी शर्मिष्ठा को देवयानी की दासी बना दिया। उसके बाद पूरे जीवन शर्मिष्ठा को देवयानी की दासी बनकर ही रहना पड़ा। एक क्षण के गुस्से ने शर्मिष्ठा का पूरा जीवन बदल दिया।
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