शिव के महामृत्युंजय रुप की उपासना दु:ख, रोग और संकट दूर करने में बहुत शुभ मानी गई है। शास्त्रों में इस मंत्र के अलग-अलग रूप में उच्चारण से मानवीय जीवन से जुड़ी अनेक परेशानियों को दूर करने का उपाय बताया गया है।
साधारणत: यह देखा जाता है कि कोई व्यक्ति पीड़ा दूर करने के लिए किसी विद्वान से महामृत्युंजय जप का उपाय जान तो लेते हैं, किंतु इस मंत्र जप की मर्यादाओं और नियमों को जानकारी के अभाव में अनदेखा कर देते हैं। जबकि शास्त्रों में बताया गया है कि किसी भी मंत्र शक्ति के पूरे लाभ और असर के लिए उसे नियम से करना बहुत जरूरी है। इसलिए यहां जानते हैं इस प्रभावकारी मंत्र जप के समय किन बातों का पालन आवश्यक है -
- मंत्र जप के वक्त पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके बैठें।
- जप कुश के आसन पर बैठकर करना श्रेष्ठ होता है।
- मंत्र जप रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
- जप करते वक्त शिवलिंग, शिव की मूर्ति, फोटो या महामृत्युंजय यंत्र सामने रखें।
- जप काल में घी का दीप और सुगंधित धूप जलाएं।
- मंत्र का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध हो।
- हर रोज नियत संख्या में मंत्र जप का संकल्प लें, जिसे जरूर पूरा करें।
- मंत्र जप की संख्या पूरी होने तक रूद्राक्ष माला गौमुखी के अंदर ही रखें।
- जप का स्थान हर रोज न बदलें।
- यथासंभव जप के दौरान शिव का अभिषेक जल या दूध से करें।
- महामृत्युंजय मंत्र जप संख्या का संकल्प पूरा होने तक किसी भी प्रकार के दुराचरण न करें। चाहे वह शरीर से हो, बातों से हो या फिर मानसिक।
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